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Fish Farming

मछलियों के रोग तथा उनके उपचार

मछलियों के रोग तथा उनके उपचार

मछलियां भी अन्य प्राणियों के समान प्रतिकूल वातावरण में रोग ग्रस्त हो जाती हैं रोग फैलते ही संचित मछलियों के स्वभाव में प्रत्यक्ष अंतर आ जाता है.

रोग ग्रस्त मछलियों में निम्नलिखित लक्षण पाए जाते हैं

  • बीमार मछलियां समूह में ना रहकर किनारे पर अलग अलग दिखाई देती है
  • बेचैनी अनियंत्रित रहती है
  • अपने शरीर को पानी में गड़े फूट में रगड़ना
  • पानी में बार-बार कूदना
  • पानी में बार-बार गोल गोल घूमना पानी में बार-बार गोल गोल घूमना
  • भोजन न करना
  • पानी में कभी कभी सीधा टंगे रहना व कभी कभी उल्टा हो जाना
  • मछली के शरीर का रंग फीका पड़ जाता है शरीर का चिपचिपा होना
  • आँख, शरीर व गलफड़ों का फूलना
  • शरीर की त्वचा का फटना
  • शरीर में परजीवी का वास हो जाना

रोग के कारण:

मछली में रोग होने के निम्नलिखित कारण हो सकते हैं: १- पानी की गुणवत्ता तापमान पीएच ऑक्सीजन कार्बन डाइऑक्साइड आदि की असंतुलित मात्रा. २- मछली के वर्जय यानी ना खाने वाले पदार्थ ( मछली का मल आदि ) जल में एकत्रित हो जाते हैं और मछली के अंगों जैसे गलफड़े, चर्म, मुख गुहा आदि के संपर्क में आकर उन्हें नुकसान पहुंचाते हैं ३- बहुत से रोग जनित जीवाणु व विषाणु जल में होते हैं जब मछली कमजोर हो जाती हैं तब वो मछली पर आक्रमण करके मछली को रोग ग्रसित कर देते हैं. ये भी पढ़े:
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 मुख्यतः रोगों को चार भागों में बांटा जा सकता है

१-  परजीवी जनित रोग २- जीवाणु जनित रोग ३- विषाणु जनित रोग ४- कवक फंगस जनित रोग

1.परजीवी जनित रोग:

आंतरिक परजीवी मछली के आंतरिक अंगों जैसे शरीर गुहा रक्त नलिका आदि को संक्रमित करते हैं जबकि बाहरी परजीवी मछली के गलफड़ों, पंखों चर्म आदि को संक्रमित करते हैं

1-ट्राइकोडिनोसिस :

लक्षण: यह बीमारी ट्राइकोडीना नामक प्रोटोजोआ परजीवी से होती है जो मछली के गलफड़ों व शरीर के सतह पर रहता है इस रोग से संक्रमित मछली शिथिल व भार में कमी आ जाती है.  गलफड़ों से अधिक श्लेष्म प्रभावित होने से स्वसन में कठिनाई होती है.  उपचार: निम्न रसायनों में संक्रमित मछली को 1 से 2 मिनट डुबो के रखने से रोग को ठीक किया जा सकता है 1.5% सामान्य नमक घोल कर 25 पीपीएम फर्मोलिन, 10 पी पी एम कॉपर सल्फेट.

2- माइक्रो एवं मिक्सो स्पोरिडिसिस:

लक्षण: यह रोग अंगुलिका अवस्था में ज्यादा होता है. यह कोशिकाओं में तंतुमय कृमिकोष बनाके रहते हैं तथा ऊतकों को भारी क्षति पहुंचाते हैं. उपचार: इसकी रोकथाम के लिए कोई ओषधि नहीं है. इसके उपचार के लिए या तो रोगग्रस्त मछली को बाहर निकल देते हैं. या मतस्य बीज संचयन के पूर्व चूना ब्लीचिंग पाउडर से पानी को रोग मुक्त करते हैं.

3- सफेद धब्बेदार रोग:

लक्षण : यह रोग इन्कयियोथीसिस प्रोटोजोआ द्वारा होता है. इसमें मछली की त्वचा, गलफड़ों एवं पंख पर सफेद छोटे छोटे धब्बे हो जाते हैं. उपचार: मैला काइट ग्रीन ०.1 पी पी ऍम , 50 पी पी ऍम फर्मोलिन में १-२ मिनट तक मछली को डुबोते हैं.

2. जीवाणु जनित रोग:

1- कालमानेरिस रोग:

लक्षण: यह फ्लेक्सीबेक्टर कालमानेरिस नामक जीवाणु के संकम्रण से होता है, पहले शरीर के बाहरी सतह पर फिर गलफड़ों में घाव होने शुरू हो जाते हैं. फिर जीवाणु त्वचीय ऊतक में पहुंच कर घाव कर देते हैं. उपचार: संक्रमित भाग में पोटेशियम परमेगनेट का लेप लगाया जाता है. 1 से 2 पी पी ऍम का कॉपर सल्फेट का खोल पोखरों में डालें. ये भी पढ़े: ठण्ड में दुधारू पशुओं की देखभाल कैसे करें

2- ड्रॉप्सी:

लक्षण: मछली जब हाइड्रोफिला जीवाणु के संपर्क में आती है तब यह रोग होता है. यह उन पोखरों में होता है जहाँ पर्याप्त मात्रा में भोजन उपलब्ध नहीं होता है. इससे मछली का धड़ उसके सिर के अनुपात में काफी छोटा हो जाता है. शल्क बहुत अधिक मात्रा में गिर जाते हैं व पेट में पानी भर जाता है. उपचार: मछलियों को पर्याप्त भोजन देना पानी की गुणवत्ता बनाये रखना १०० किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के हिसाब से पानी में 15 दिन में चूना डालते रहना चाहिए.

3- बाइब्रियोसिस रोग:

लक्षण: यह रोग बिब्रिया प्रजाति के जीवाणुओं से होता है. इसमें मछलियों को भोजन के प्रति अरुचि के साथ साथ रंग काला पड़ जाता है. मछली अचानक मरने भी लगती हैं. यह मछली की आंखों को अधिक प्रभावित करता है सूजन के कारण आंखें बाहर आ जाती हैं. उपचार: ऑक्सीटेटरासाइक्लिन तथा सल्फोनामाइन को 8 से 12 ग्राम प्रति किलोग्राम भोजन के साथ मिला कर देना चाहिए.

 3. कवक एवं फफूंद जनित रोग:

 लक्षण: सेप्रोलिग्नियोसिस:  यह रोग सेप्रोलिग्नियोसिस पैरालिसिका नामक फफूंद से होता है. जाल द्वारा मछली पकड़ने व परिवहन के दौरान मत्स्य बीज के घायल हो जाने से फफूंद घायल शरीर पर चिपक कर फैलने लगती है. त्वचा पर सफेद जालीदार सतह बनाता है. जबड़े फूल जाते हैं पेक्टरल वाका डॉल्फिन पेक्टोरल व काडल फिन के पास रक्त जमा हो जाता है. रोग ग्रस्त भाग पर रुई के समान गुच्छे उभर आते हैं. उपचार:  3% नमक का घोल या 1 :1000 पोटाश का घोल पोटाश का घोल या 1 अनुपात 2 हजार कैलशियम सल्फेट का घोल मैं 5 मिनट तक डुबोने से विषाणु रोग समाप्त किया जा सकता है.

1 - स्पिजुस्टिक अल्सरेटिव सिंड्रोम:

गत 22 वर्षों से यह रोग भारत में महामारी के रूप में फैल रहा है. सर्वप्रथम यह रोग त्रिपुरा राज्य में 1983 में प्रविष्ट हुआ तथा वहां से संपूर्ण भारत में फैल गया यह रोग तल में रहने वाली सम्बल, सिंधी, बाम, सिंघाड़ कटरंग तथा स्थानीय छोटी मछलियों को प्रभावित करता है. कुछ ही समय में पालने वाली मछलियां कार्प, रोहू ,कतला, मिरगला  मछलियां भी इस रोग की चपेट में आ जाती हैं. ये भी पढ़े: अब किट से होगी पशु के गर्भ की जांच लक्षण:  इस महामारी में प्रारंभ में मछली की त्वचा पर जगह-जगह खून के धब्बे उतरते हैं बाद में चोट के गहरे घाव में तब्दील हो जाते हैं. चरम अवस्था में हरे लाल धब्बे बढ़ते हुए पूरे शरीर पर यहां वहां गहरे अल्सर में परणित हो जाते हैं. पंख व पूंछ गल जाती हैं. अतः शीघ्र व्यापक पैमाने पर मछलियां मर कर किनारे पर दिखाई देती है. बचाव के उपाय: वर्षा के बाद जल का पीएच देखकर या कम से कम 200 किलो चूने का उपयोग करना चाहिए. तालाब के किनारे यदि कृषि भूमि है तो तालाब की चारों ओर से बांध देना चाहिए ताकि कृषि भूमि का जल सीधे तलाब में प्रवेश न करें. शीत ऋतु के प्रारंभिक काल में ऑक्सीजन कम होने पर पंप ब्लोवर से  पानी में ऑक्सीजन प्रवाहित करना चाहिए. उपचार: अधिक रोग ग्रस्त मछली को तालाब से अलग कर देना चाहिए. चूने के उपयोग के साथ-साथ ब्लीचिंग पाउडर 1 पीपीएम अर्थात 10 किलो प्रति हेक्टेयर मीटर की दर से तालाब में डालना चाहिए.
जानिये PMMSY में मछली पालन से कैसे मिले लाभ ही लाभ

जानिये PMMSY में मछली पालन से कैसे मिले लाभ ही लाभ

खेती किसानी में इंटीग्रेटेड फार्मिंग सिस्टम (Integrated Farming System) या एकीकृत कृषि प्रणाली के चलन को बढ़ावा देने के लिए केंद्र एवं राज्य सरकारें किसानों को परंपरागत किसानी के अलावा खेती से जुड़ी आय के अन्य विकल्पों को अपनाने के लिए प्रेरित कर रही हैं। मछली पालन भी इंटीग्रेटेड फार्मिंग सिस्टम (Integrated Farming System) का ही एक हिस्सा है।

प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना

इस प्रोत्साहन की कड़ी में प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (Pradhan Mantri Matsya Sampada Yojana)(PMMSY) भी, किसान की आय में वृद्धि करने वाली योजनाओं में से एक योजना है। इस योजना का लाभ लेकर किसान मछली पालन की शुरुआत कर अपनी कृषि आय में इजाफा कर सकते हैं। प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना क्या है, किस तरह किसान इस योजना का लाभ हासिल कर सकता है, इस बारे में जानिये मेरी खेती के साथ। केंद्र और राज्य सरकार की प्राथमिकता देश के किसानों की आय में वृद्धि करने की है। 

खेती, मछली एवं पशु पालन के अलावा जैविक खाद आदि के लिए सरकार की ओर से कृषक मित्रों को उपकरण, सलाह, बैंक ऋण आदि की मदद प्रदान की जाती है। किसानों की आय को बढ़ाने में मछली पालन (Fish Farming) भी अहम रोल निभा सकता है। ऐसे में आय के इस विकल्प को भी किसान अपनाएं, इसलिए सरकारों ने मछली पालन मेें किसान की मदद के लिए तमाम योजनाएं बनाई हैं।

प्रधानमंत्री मत्स्य सम्पदा योजना के शुभारम्भ अवसर पर प्रधानमंत्री का सम्बोधन

कम लागत में तगड़ा मुनाफा पक्का

मछली पालन व्यवसाय में स्थितियां अनुकूल रहने पर कम लागत में तगड़ा मुनाफा पक्का रहता है। किसान अपने खेतों में मिनी तालाब बनाकर मछली पालन के जरिए कमाई का अतिरिक्त जरिया बना सकते हैं। मछली पालन के इच्छुक किसानों की मदद के लिए पीएम मत्स्य संपदा योजना बनाई गई है। इस योजना का लाभ लेकर किसान मछली पालन के जरिए अपनी निश्चित आय सुनिश्चित कर सकते हैं।

PMMSY के लाभ ही लाभ

पीएमएमएसवाय (PMMSY) यानी प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना में किसानों के लिए फायदे ही फायदे हैं। सबसे बड़ा फायदा ये है कि, इसमें पात्र किसानों को योजना में सब्सिडी प्रदान की जाती है। सब्सिडी मिलने से योजना से जुड़ने वाले पर धन की उपलब्धता का बोझ कम हो जाता है। खास तौर पर अनुसूचित जाति से जुड़े हितग्राही को अधिक सब्सिडी प्रदान की जाती है। इस वर्ग के महिला और पुरुष किसान हितग्राही को PMMSY के तहत 60 फीसदी तक की सब्सिडी प्रदान की जाती है। प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना से जुड़ने वाले अन्य वर्ग के किसानों के लिए 40 फीसदी सब्सिडी का प्रबंध किया गया है।

प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना लोन, वो भी प्रशिक्षण के साथ

प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के तहत मछली पालन की शुरुआत करने वाले किसानों को सब्सिडी के लाभ के साथ ही मत्स्य पालन के बारे में प्रशिक्षित भी किया जाता है। अनुभवी प्रशिक्षक योजना के हितग्राहियों को पालन योग्य मुफाकारी मछली की प्रजाति, मत्स्य पालन के तरीकों, बाजार की उपलब्धता आदि के बारे में प्रशिक्षित करते हैं।

कैसे जुड़ें PMMSY योजना से

प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के तहत लाभ लेने के इच्छुक किसान मित्र पीएम किसान योजना की अधिकृत वेबसाइटपर आवेदन कर सकते हैं। और अधिक जानकारी के लिए, भारत सरकार की आधिकारिक वेबसाइट को देखें : भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के मात्स्यिकी विभाग  मत्स्य पालन विभाग (Department of Fisheries) - PMMSY पीएम मत्स्य संपदा योजना के साथ किसान नाबार्ड से भी मदद जुटा सकता है। मछली पालन को बढ़ावा देने के लिए लागू पीएम मत्स्य संपदा योजना के अलावा, किसान हितग्राही को मछली पालन का व्यवसाय शुरू करने के लिए सस्ती दरों पर बैंक से लोन दिलाने में भी मदद की जाती है।

आधुनिक तकनीक से बढ़ा मुनाफा

प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना से जुड़े झारखंड के कई किसानों की आय में उल्लेखनीय रूप से सुधार हुआ है। राज्य के कई किसान इस योजना के तहत बॉयोफ्लॉक (Biofloc) और आरएएस (Recirculating aquaculture systems (RAS)) जैसी आधुनिक तकनीक अपनाकर मछली पालन से भरपूर मुनाफा कमा रहे हैं। राष्ट्रीय मात्स्यिकी विकास बोर्ड (NATIONAL FISHERIES DEVELOPMENT BOARD), भारत सरकार द्वारा जारी लेख "जलकृषि का आधुनिक प्रचलन : बायोफ्लॉक मत्स्य कृषि" की पीडीएफ फाइल डाउनलोड करने के लिये, यहां क्लिक करें - बायोफ्लॉक मत्स्य कृषि 

पीएम मत्स्य संपदा योजना में किसानों को रंगीन मछली पालन के लिए भी अनुदान की मदद प्रदान की जाती है। साथ ही नाबार्ड भी टैंक या तालाब निर्माण के लिए 60 फीसदी अनुदान प्रदान करता है।

ऐसे सुनिश्चित करें मुनाफा

खेत में मछली पालन का जो कारगर तरीका इस समय प्रचलित है वह है तालाब या टैंक में मछली पालन। इन तरीकों की मदद से किसान मुख्य फसल के साथ ही मत्स्य पालन से भी कृषि आय में इजाफा कर सकते हैं। मत्स्य पालन विशेषज्ञों के मान से 20 लाख की लागत से तैयार तालाब या टैंक से किसान बेहतरीन कमाई कर सकते हैं।

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विशेषज्ञों के अनुसार मछली पालन में अधिक कमाई के लिए किसानों को फीड आधारित मछली पालन की विधि को अपनाना चाहिए। इस तरीके से मछलियों की अच्छी बढ़त के साथ ही वजन भी बढ़िया होता है। यदि मछली की ग्रोथ और वजन बढ़िया हो तो किसान की तगड़ी कमाई भी निश्चित है। प्रचलित मान से किसान को एक लाख रुपए के मछली के बीज पर पांच से छह गुना ज्यादा लाभ मिल सकता है। किसान बाजार में अच्छी मांग वाली मछलियों का पालन कर भी अपनी नियमित कमाई में यथेष्ठ वृद्धि कर सकते हैं। किसानों को पंगास या मोनोसेक्स तिलापिया प्रजाति की मछलियों का पालन करने की सलाह मत्स्य पालन के विशेषज्ञों ने दी है।

मत्स्य पालन की पूरी जानकारी (Fish Farming information in Hindi)

मत्स्य पालन की पूरी जानकारी (Fish Farming information in Hindi)

परंपरागत तरीके से किया गया मछली पालन भी आपकी कमाई को समय के साथ इतना बढ़ा सकता है, जो कि कई गाय और भैंस पालने से होने वाली बचत से कई गुना ज्यादा हो सकती है "  - चार्ल्स क्लोवर (लोकप्रिय कृषि वैज्ञानिक)

क्या है मछली पालन और कैसे हुई इसकी शुरुआत

मछली पालन में पानी की मदद से घर पर ही एक छोटा तालाब या पूल बनाकर मछलियां को बड़ा किया जाता है और उन्हें भोजन के रूप में बेचा जाता है या फिर खुद भी इस्तेमाल किया जाता है। एनिमल फूड प्रोडक्शन में मछली पालन सबसे तेजी से वृद्धि करने वाली खेती में गिना जाता है, जिसके तहत अलग-अलग प्रजातियों की मछलियों की कृत्रिम रूप से ब्रीडिंग करवाई जाती है। मुख्यतः मछली पालन की शुरुआत रोमन एम्पायर से जुड़े हुए देशों में हुई थी ,परंतु जिस विधि से वर्तमान मछली पालन किया जाता है, उसकी शुरुआत चीन में हुई मानी जाती है। मछली के अंडे की मदद से आधुनिक तरीके के फार्म हाउस बनाकर 1733 में जर्मनी के कुछ किसानों ने भी आधुनिक मत्स्य पालन की नींव रखी थी और भारत में भी कुछ क्षेत्रों में वर्तमान समय में इसी प्रकार का मत्स्य पालन किया जाता है।

कैसे करें मछली पालन की शुरुआत :

वर्तमान में भारत में मछली पालन की कई अलग-अलग विधियां अपनायी जाती है।

  • मछली फार्म/फिश टैंक :

मछली पालन की शुरुआत के लिए सबसे पहले आपको एक मछली फार्म/फिश टैंक बनाना होगा। उसी जगह पर मछलियों को लंबे समय तक रखा जाता है। मछली फार्म एक बड़ा तालाब या पूल होता है, जिसमें पानी भर कर रखा जाता है और इसे पूरी तरीके से साफ पानी से ही भरा जाता है।

किसान भाइयों को ध्यान रखना होगा कि इस प्रकार के तालाबों में अलग-अलग तरह के उपकरण इस्तेमाल करने के लिए बीच में जगह का होना भी अनिवार्य है, साथ ही उस तालाब में पानी भरे जाने और निकालने के लिए ड्रेनेज की भी उत्तम व्यवस्था होनी चाहिए, नहीं तो पानी के प्रदूषित होने की वजह से आपके तालाब में पनप रही मछलीयां पूरी तरीके से खत्म हो सकती है।

साथ ही पानी के प्रदूषण को रोकने के लिए आपको तालाब की ऊपरी सतह को बारिश के समय एक कवर से ढक कर रखना होगा, नहीं तो कई बार अम्लीय वर्षा होने की वजह से तालाब के पानी की अम्लता काफी बढ़ जाती है और इससे मछलियों की ग्रोथ पूरी तरीके से रुक सकती है।

  • मछली की प्रजाति का निर्धारण करना :

सबसे पहले किसान भाइयों को अपने आस पास के मार्केट में मांग के अनुसार मछली की प्रजाति का चयन करना होगा। वर्तमान में भारत में रावस (Rawas or Indian Salmon) तथा कतला (katla) के साथ ही तिलापिया (Tilapia) और कैटफिश (Catfish) जैसी प्रजातियां बहुत ही तेजी से वृद्धि करके बचत देने वाली प्रजातियों में गिनी जाती है। यदि आप अपने घर के ही किसी एरिया में मछली फार्म बनाकर उत्पादन करना चाहते हैं तो कतला और तिलपिया मछली को सबसे अच्छा माना जाता है।

पिछले एक दशक से भारत का बाजार विश्व में पानी से उत्पादित होने वाले एनिमल फूड में सर्वश्रेष्ठ माना जाता रहा है और अभी भी विश्व निर्यात में भारत पहले स्थान पर आता है।

  • फिश फार्मिंग करने की लोकप्रिय विधियां :

वर्तमान में भारत में एकल प्रजाति मछली पालन और क्लासिकल तरीके से मछली की खेती की जाती है।

एकल प्रजाति विधि :

एकल प्रजाति विधि में फिश फार्म में लंबे समय तक केवल एक ही प्रजाति की मछलियों को रखना होगा, यदि आप एक नए किसान भाई है तो इस विधि को ही अपनाना चाहिए क्योंकि इसमें अलग-अलग प्रजाति की मछलियां ना होने की वजह से आपको कम ध्यान देने की जरूरत होगी, जिससे कि व्यापार में नुकसान होने की संभावना कम रहेगी।

क्लासिकल तरीके से मछली की खेती :

दूसरी विधि के तहत पांच से दस प्रकार की अलग-अलग प्रजातियों को एक ही जगह पर बड़ा किया जाता है।

इस विधि में किसान भाइयों को ध्यान रखना होगा कि अलग-अलग मछलियों की भोजन और दूसरी आवश्यकता भी अलग-अलग होती है, इसलिए अपने फिश फार्म निरंतर निगरानी करते रहना होगा।

वर्तमान में मछलियों के अंडे को बड़ा करके भी कई युवा किसान भाई मछली पालन कर रहे हैं, परंतु इसके लिए आपको कई प्रकार की वैज्ञानिक विधियों की आवश्यकता होगी जो कि एक नए किसान के लिए काफी कठिन हो सकती है।

  • मछली पालन के लिए कैसे प्राप्त करे लाइसेंस :

मछली पालन के लिए भारत के कुछ राज्यों में सरकारी लाइसेंस की आवश्यकता होती है। इसके बिना उत्पादन करने पर आपको भारी दंड भी भरना पड़ सकता है। आंध्र प्रदेश,तमिलनाडु और केरल राज्य सरकार ने इस प्रकार के प्रावधान बनाए है।

इस लाइसेंस की जानकारी आप अपने राज्य सरकार के कृषि मंत्रालय के मछली विभाग की वेबसाइट पर जाकर ले सकते है।

अलग-अलग राज्यों ने मछली उत्पादन के दौरान होने वाले पर्यावरणीय प्रभाव और नियंत्रण के लिए कई प्रकार के कानून भी बना रखे है, क्योंकि मछली पालन के दौरान काफी ज्यादा वेस्ट उत्पादित होता है, जिसे मुर्गी पालन के दौरान उत्पादित होने वाले वेस्ट के जैसे खाद के रूप में इस्तेमाल करने की संभावना कम होती है।

  • मछली पालन के लिए कैसे करें सही जगह का चुनाव :

यदि आप बड़े स्तर पर मछली पालन करना चाहते हैं, तो आपको एक खुली और समतल जगह का चुनाव करना होगा और वहां पर ही मछली फार्म के लिए छोटे छोटे तालाब बनाने होंगे।

इस प्रकार के तालाब दोमट मिट्टी वाली समतल जमीन में बनाए जाएं, तो उनकी उत्पादकता सबसे प्रभावी रूप से सामने आती है।

अलग-अलग प्रजाति के लिए तालाब के आकार और डिजाइन में भी अंतर रखा जाता है, जैसे कि कैटफिश प्रजाति ज्यादातर तालाब के नीचे के हिस्से में ही रहती है इसीलिए इस प्रकार की प्रजाति के उत्पादन के लिए तालाब को ऊपर की तुलना में नीचे की तरफ ज्यादा बड़ा और चौड़ा रखा जाता है।

  • मत्स्य पालन में कौन-कौन से उपकरणों की होगी आवश्यकता :

यह बात तो किसान भाई जानते ही हैं, कि किसी भी प्रकार की खेती के लिए अलग-अलग उपकरण और सामग्री की आवश्यकता होती है, वैसे ही मछली पालन के लिए भी कुछ उपकरण जरूरी होंगे।

जिनमें सबसे पहले एक पंप (pump) को शामिल किया जा सकता है, क्योंकि कई बार पानी पूरी तरीके से साफ ना होने पर उस में घुली हुई ऑक्सीजन की मात्रा कम हो जाती है, जिससे कि मछलियों को अपने गलफड़ों से सांस लेने में तकलीफ होने लगती है, इसके लिए आपको पम्प की मदद से ऊपर की वातावरणीय हवा को पानी में भेजना होगा, ऐसा करने से मछलियों की वृद्धि काफी तेजी से होगी और उनके द्वारा खाया गया खाना भी पूरी तरीके से उनकी वृद्धि में ही काम आ पाएगा।

दूसरे उपकरण के रूप में एक पानी शुद्धिकरण (Water Purification) सिस्टम का इस्तेमाल किया जाना चाहिए, इसके लिए कुछ किसान पानी को समय-समय पर तालाब से बाहर निकाल कर उसे फिर से भर देते है वहीं कुछ बड़े स्तर पर मछली पालन करने वाले किसान वैज्ञानिक उपकरणों की मदद से अल्ट्रावायलेट किरणों का इस्तेमाल कर पानी में पैदा होने वाले हानिकारक जीवाणुओं को नष्ट कर देते हैं।

यदि आप घर से बाहर बने किसी प्राकृतिक तालाब में मछली पालन करना चाहते हैं, तो वहां से मछलियों को बाहर निकलने से रोकने के लिए बड़े जाली से बने हुए नेट का इस्तेमाल किया जाता है, जिसके अंदर मछलियों को फंसा कर बाहर निकालकर बाजार में बेचा जा सकता है।

वर्तमान में तांबे की धातु से बने हुए नेट काफी चर्चा में है, क्योंकि इस प्रकार के नेट को समय-समय पर तालाब में घुमाते रहने से वहां पर पैदा होने वाले कई हानिकारक जीवाणुओं के साथ ही शैवाल का उत्पादन भी पूरी तरीके से नष्ट हो सकता है और पानी में डाला गया भोजन पूरी तरह से मछलियों की द्वारा ही काम में लिया जाता है।

  • कैसे डालें मछलियों को खाना :

मछली उत्पादन की तेज वृद्धि के लिए आपको लगभग एक पाउंड वजन की मछलियों को 2 पाउंड वजन का खाना खिलाना होता है। यह खाना बाजार में ही कई कंपनी के द्वारा बेचा जाता है, इस खाने में डेफनिया (Defnia) , टुबीफेक्स (Tubifex) और ब्लडवॉर्म (Bloodworm) का इस्तेमाल किया जाता है।

इस खाने की वजह से मछलियों में कैल्शियम,फास्फोरस और कई प्रकार के ग्रोथ हार्मोन की कमी की पूर्ति की जा सकती है। यह खाना मछलियों के शरीर में कार्बोहाइड्रेट की कमी को पूरा करने के अलावा प्रोटीन के स्तर को भी बढ़ाते है, जिससे उनका वजन बढ़ने के अलावा अच्छी क्वालिटी मिलने की वजह से बाजार में मांग भी तेजी से बढ़ती है और किसानों को होने वाला मुनाफा भी अधिक हो सकता है।

किसान भाई ध्यान रखें कि मछली फार्म में मछलियों को दिन में 2 बार ही खाना खिलाना होता है, इससे कम या ज्यादा बार खिलाने की वजह से उनकी मस्क्युलर (Muscular) ग्रोथ पूरी तरीके से रुक सकती है।

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मछली पालन में कितनी हो सकती है लागत ?

मछली पालन के दौरान होने वाली लागत का निर्धारण अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग स्तर पर किया जाता है, क्योंकि कई जगह पर तालाब में डालने के लिए काम में आने वाली छोटी मछलियों की कीमत काफी कम होती है, उसी हिसाब से वहां पर आने वाली लागत भी कम हो जाती है। भारत के पशुपालन मंत्रालय और मछली विभाग (मत्स्यपालन विभाग - DEPARTMENT OF FISHERIES) की तरफ से जारी की गई एक एडवाइजरी के अनुसार, एक बीघा क्षेत्र में मछली फार्म स्थापित करके पूरी तरीके से मछली उत्पादन करने के दौरान, लगभग दस लाख रुपए तक का खर्चा आ सकता है। अलग-अलग राज्यों में इस्तेमाल में होने वाले अलग उपकरणों और लेबर के खर्चे को मिलाकर यह लागत सात लाख रुपए से लेकर बारह लाख रुपए तक हो सकती है।

मछलियों में होने वाली बीमारियां और इनका इलाज

अलग-अलग प्रजाति की मछलियों को बड़ा होने के लिए अलग प्रकार के पर्यावरणीय कारकों की आवश्यकता होती है कई बार दिन ही पर्यावरणीय कारकों की कमी से और संक्रमण तथा दूसरी समस्याओं की वजह से मछलियों में कई तरह की बीमारियां देखने को मिलती है जिनमें कुछ बीमारियां और उनके इलाज की जानकारी निम्न प्रकार है :-

  • लाल घाव रोग (Epizootic ulcerative disease syndrome) :

इस रोग से संक्रमित मछली के शरीर के आंतरिक हिस्सों में जगह-जगह पर घाव हो जाते हैं और एक बार यदि एक मछली इस रोग से संक्रमित हो जाए तो इसका संक्रमण सभी मछलियों में फैल सकता है, यहां तक कि अलग प्रजातियां भी इस रोग की चपेट में आ जाती है।

लाल घाव बीमारी के पीछे कई प्रकार के कारक जैसे कि जीवाणु, फंगस और विषाणु को जिम्मेदार माना जाता है। संक्रमण फैलने के 1 से 2 दिन के बाद ही मछलियों की मृत्यु होना शुरू हो जाती है।

इस रोग का इलाज करने के लिए आपको अपने तालाब में चूने का मिश्रण बनाकर एक सप्ताह के अंतराल के साथ छिड़काव करना होगा।

हालांकि अभी इसके उपचार के लिए भारतीय कृषि वैज्ञानिकों ने एक औषधि भी तैयार की है, जिसे 'सीफैक्स' ब्रांड नाम से बाजार में भी बेचा जा रहा है। इस औषधि का इस्तेमाल प्रति हेक्टेयर क्षेत्र के आधार पर एक लीटर की दर से किया जा सकता है।

यदि औषधि के छिड़काव के 5 से 6 दिन बाद भी मछलियों की मृत्यु जारी रहे,तो तुरंत किसी पशु चिकित्सक से सलाह लेना ना भूलें।

  • ड्राप्सी रोग(Dropsy Disease) :

यह रोग मुख्यतया कैटफ़िश प्रजाति की मछलियों में देखा जाता है, इस रोग से ग्रसित होने के बाद मछली के शरीर का आकार पूरी तरह असंतुलित हो जाता है और उसके सिर की तुलना में धड़ का आकार बहुत ही छोटा और पतला रह जाता है, जिससे मछली की आगे की ग्रोथ भी पूरी तरह प्रभावित हो जाती है।

ड्रॉप्सी रोग की वजह से शरीर की अंदरूनी गुहा में पानी का जमाव होने लगता है, जोकि एक बिना संक्रमित मछली में गलफड़ों के जरिए बाहर निकल जाना चाहिए था।

इस रोग के इलाज के लिए किसान भाइयों को अपने तालाब में पानी की साफ सफाई का पूरा ध्यान रखना होगा और मछलियों को पर्याप्त मात्रा में भोजन देना होगा।

ऊपर बताई गई चूने की विधि का इस्तेमाल इस रोग के इलाज के लिए भी किया जा सकता है, बस छिड़काव के बीच का अंतराल 15 दिन से अधिक रखें।

  • मछलियों के शरीर में ऑक्सीजन की कमी (Hypoxia) :

मछलियां अपने गलफड़ों की मदद से पानी में घुली हुई ऑक्सीजन का इस्तेमाल करती है परन्तु यदि किन्हीं भी कारणों से जल प्रदूषण बढ़ता है तो उस में घुली हुई ऑक्सीजन की मात्रा काफी कम हो जाती है, जिससे मछलियों के लिए काम में आने वाली ऑक्सीजन भी स्वतः ही कम हो जाती है।

मुख्यतया ऐसी समस्या मानसून काल और गर्मियों के दिनों में नजर आती है परंतु कभी-कभी सर्दियों के मौसम में भी प्रातः काल के समय मछलियों के लिए ऐसी दिक्कत हो सकती है।

इसके इलाज के लिए मछलियों को दिए जाने वाले भोजन को थोड़ा कम करना होगा और पंप की सहायता से बाहर की पर्यावरणीय वायु को अंदर प्रसारित करना होगा, जिससे कि जल में घुली हुई ऑक्सीजन की मात्रा को एक अच्छे स्तर पर पुनः पहुंचाया जा सके।

  • अमोनिया पॉइजनिंग :

जब भी किसी फिश टैंक को शुरुआत में स्थापित किया जाता है और उसमें एकसाथ ही सही अधिक मात्रा में मछलियां लाकर डाल दी जाती है तो उस पूरे टैंक में अमोनिया की मात्रा काफी बढ़ सकती है।

ऐसी समस्या होने पर मछलियों के गलफड़े लाल आकार के हो जाते है और उन्हें सांस लेने में बहुत ही तकलीफ होने लगती है।

इससे बचाव के लिए समय-समय पर पानी को बदलते रहना होगा और यदि आप एक साथ इतने पानी की व्यवस्था नहीं कर सकते हैं तो कम से कम उस टैंक में भरे हुए 50% पानी को तो बदलना ही होगा।

इसके अलावा अमोनिया स्तर को और अधिक बढ़ने से रोकने के लिए मछलियों को सीमित मात्रा में खाना खिलाना चाहिए और अपने टैंक में मछलियों की संख्या धीरे-धीरे ही बढ़ानी चाहिए।साथ ही बिना खाए हुए खाने को तुरंत बाहर निकाल देना होगा, इसके अलावा पानी की गुणवत्ता की भी समय-समय पर जांच करवानी होगी।

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मछली पालन की मार्केटिंग स्ट्रेटेजी :

अपने ग्राहकों तक सही समय और सही मात्रा में मछलियां पहुंचाने के अलावा अच्छे मुनाफे के लिए आपको एक बेहतर मार्केटिंग स्ट्रेटजी की आवश्यकता होगी। इसके लिए, संयुक्त राष्ट्र की खाद्य एवं कृषि संस्थान (Food and Agriculture Organisation of United Nations) ने एक एडवाइजरी जारी की है, इस एडवाइजरी के अनुसार एक बेहतर मार्केट पकड़ बनाने के लिए आपको कुछ बातों का ध्यान रखना होगा, जैसे कि:

  • प्राइमरी मार्केट में केवल उसी विक्रेता को अपनी मछलियां बेचें, जो सही कीमत और तैयार की गई मछलियों की निरंतर खरीदारी करता हो।
  • किसान भाइयों को ध्यान रखना होगा कि अपने द्वारा तैयार की गई मछलियों की अंतिम बाजार कीमत की तुलना में लगभग 65% तक मुनाफा मिल रहा हो।

जैसे कि यदि एक किलो मछली की वर्तमान बाजार कीमत 400 रुपए है, तो आपको लगभग 330 रुपए प्रति किलोग्राम से कम कीमत पर अपनी मछली नहीं बेचनी चाहिए।

  • यदि बाजार में मांग अधिक ना हो और आपके टैंक की मछलियां पूरी तरीके से बिकने के लिए तैयार है तो उन्हें एक कोल्ड स्टोरेज हाउस में ही संरक्षित करना चाहिए।

इसके लिए भारत सरकार के उपभोक्ता (Consumer) मंत्रालय के अंतर्गत आने वाले वेयरहाउस डिपॉजिटरी (Warehouse Depository) संस्थान या फिर फ़ूड कारपोरेशन ऑफ इंडिया (Food Corporation of India - FCI) के साथ जुड़े हुए कुछ कोल्ड स्टोरेज (Cold Storage) हाउस में भी संरक्षित कर सकते है।

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इसके लिए कंजूमर मंत्रालय की वेबसाइट पर जाकर अपने आसपास में स्थित किसी ऐसे ही कोल्ड स्टोरेज हाउस की जानकारी लेनी होगी।

  • संयुक्त राष्ट्र की FAO संस्थान के द्वारा ही किए गए एक सर्वे में पाया गया कि भारतीय मत्स्य किसानों को लगभग 56% मुनाफा ही देय किया जाता है और 44% मुनाफा बिचौलिये अपने पास रख लेते हैं।

अपने मुनाफे को बढ़ाने के लिए आप अलग-अलग बिचौलियों से संपर्क कर सकते है या फिर सरकार के राष्ट्रीय कृषि बाजार E-NAM (National Agriculture Market - eNAM) प्रोजेक्ट के तहत सीधे ही खरीदार से संपर्क कर, अपनी मछलियों को भारत के किसी भी हिस्से में बेच सकते हैं।

  • मछलियों के टैंक में बड़ा होते समय उनके खानपान का पूरा ध्यान रखना चाहिए, जिससे कि वजन भी अच्छा बढ़ेगा साथ ही प्रोटीन की मांग रखने वाले युवा लोगों के मध्य आप के फार्म हाउस की लोकप्रियता भी बढ़ेगी।
  • अपने लोकल मार्केट में मछलियों को बेचने के लिए आप एक वेबसाइट का निर्माण करवा सकते हैं, जिसमें ऑनलाइन पेमेंट की सुविधा उपलब्ध करवाकर डायरेक्ट डिलीवरी भी कर सकते हैं।

यदि आपके क्षेत्र में दूसरा प्रतिस्पर्धी नहीं है तो आसानी से आपकी सभी मछलियों को अपने इलाके में ही बेचा जा सकता है।

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मछली पालन में योगदान के लिए कुछ सरकारी स्कीम और उनके तहत मिलने वाली सब्सिडी :

भारत में मत्स्य पालन करने वाले किसानों की आय को बढ़ाने के लिए अपने संकल्प के तौर पर साल 2019 में ही, भारत सरकार ने मत्स्य पालन के लिए अलग से एक विभाग की स्थापना भी की है और इसी के तहत कुछ नई सरकारी स्कीमों की भी शुरुआत की है, जो कि निम्न प्रकार है :

 मछली उत्पादन के लिए लाई गई नील क्रांति के पहले फेज में अच्छी सफलता मिलने के बाद अब इसी का अगला फेस शुरू किया गया है। इस स्कीम के तहत यदि आप सामान्य कैटेगरी में आते हैं तो आपको अपने प्रोजेक्ट में लगने वाली कुल आय का लगभग 40% सब्सिडी के तौर पर दिया जाएगा, वहीं अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और महिलाओं के लिए सब्सिडी को 60% रखा गया है।

इस स्कीम का उद्देश्य मछली उत्पादन के अलग-अलग क्षेत्र में काम कर रहे अलग-अलग प्रकार के किसानों को सब्सिडी प्रदान करना है। इस स्कीम के तहत यदि आप एक नया फिश टैंक बनाते है और उस पर तीन लाख रुपए तक की लागत आने तक 20% सब्सिडी दी जाती है, वहीं अनुसूचित जाति एवं जनजाति के लिए 25% सब्सिडी रखी गई है। यदि आप अपने पुराने टैंक को पुनर्निर्मित कर उसे मत्स्य पालन में इस्तेमाल करने योग्य बनाना चाहते हैं तो भी आपको यह सब्सिडी मिल सकती है।

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कुछ समय पहले ही भारत सरकार ने कृषि से जुड़े किसानों को मिलने वाले किसान क्रेडिट कार्ड की पहुंच को अब मत्स्य पालन के लिए भी बढ़ा दिया है और इसी क्रेडिट कार्ड की मदद से अब मछली पालन करने वाले किसान भी आसानी से कम ब्याज दर पर लोन दिया जा सकेगा। यदि आप दो लाख रुपए तक का लोन लेना चाहते हैं तो आपको 7% की ब्याज दर चुकानी होगी, जिसमें समय-समय पर सरकार के द्वारा रियायत भी दी जाती है। किसान भाइयों को ध्यान रखना होगा, कि एक बार यह क्रेडिट कार्ड मिल जाने पर आपको किसी भी प्रकार के संसाधन को गिरवी रखने की जरूरत नहीं होती है और बिना अपनी पूंजी दिखाए आसानी से 3 लाख रुपए का लोन ले पाएंगे।

पिछले 2 से 3 वर्षों में भारत के मछली उत्पादक किसानों ने 2020 में लांच हुई प्रधान मंत्री मत्स्य संपदा योजना के तहत मिलने वाली सब्सिडी का काफी अच्छा फायदा उठाया है। इस स्कीम के तहत अनुसूचित जाति और महिलाओं को मत्स्य पालन करने के लिए बनाए गए पूरे सेटअप पर आने वाले खर्चे का लगभग 60% सब्सिडी के तौर पर दिया जाता है, वहीं सामान्य केटेगरी से आने वाले किसानों को 40% सब्सिडी मिलेगी। इस स्कीम से जुड़ने के लिए आपको अपना आधार कार्ड और मूल निवास प्रमाण पत्र के साथ ही बैंक पासबुक की एक प्रति और जाति प्रमाण पत्र के साथ भारत सरकार के ही अंत्योदय सरल पोर्टल पर जाकर रजिस्ट्रेशन करवाना होगा या फिर आप अपने आसपास ही स्थित मछली विभाग के स्थानीय ऑफिस में जाकर भी इस योजना का लाभ उठा सकते हैं। आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत लांच की गई इस स्कीम के अंतर्गत किसानों की आय को दोगुना करने के अलावा मछली उत्पादन के बाद उसे बाजार तक पहुंचाने में आने वाली लागत को भी 30% तक कम करने का लक्ष्य रखा गया है।

और अधिक जानकारी के लिए, भारत सरकार की आधिकारिक वेबसाइट को देखें :भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के मात्स्यिकी विभागमत्स्य पालन विभाग (Department of Fisheries) - PMMSY


आशा करते है कि Merikheti.com के द्वारा दी गई जानकारी के साथ ही सरकार के द्वारा चलाई जा रही योजनाओं की मदद से आप भी मत्स्य पालन कर अच्छा मुनाफा कमा पाएंगे और मछली उत्पादन में भारत को विश्व में श्रेष्ठ स्थान दिलाने में भी कामयाब हो पाएंगे।

छत्तीसगढ़ में मिला मछली पालन को कृषि का दर्जा, जाने किसानों के लिए कैसे है सुहाना अवसर

छत्तीसगढ़ में मिला मछली पालन को कृषि का दर्जा, जाने किसानों के लिए कैसे है सुहाना अवसर

छत्तीसगढ़ तालाबों और जलाशयों की भूमि है, इसलिए छत्तीसगढ़ में फसलों के साथ-साथ मछली पालन भी व्यवसाय एक अहम हिस्सा बन गया है। इसी के चलते हाल ही में छत्तीसगढ़ सरकार की एक घोषणा ने यहां पर मत्स्य पालन करने वाले लोगों को काफी राहत की सांस दी है। आंकड़ों की माने तो छत्तीसगढ़ भारत में मत्स्य पालन में आठवें नंबर पर आता है और माना जा रहा है, कि इस घोषणा के बाद इसके 6th नंबर पर आने की संभावना है। मछली पालन से यहां के लोगों की आर्थिक स्थिति बहुत मजबूत हो सकती हैं और इसे ही देखते हुए सरकार ने मत्स्य पालन को कृषि का दर्जा दिया है। प्रशासन की मानें तो यह है राज्य के लोगों को आर्थिक तौर पर मजबूत करने और उन्हें आजीविका के और साधन देने के लिए लिया गया एक बेहतरीन फैसला है।

अब मछली पालन में क्या होंगे फायदे

अब मछली पालन के लिए लोन लेने की संभावनाएं भी बढ़ गई हैं, क्योंकि यहां पर कृषि की तरह ही बिना ब्याज के लोन देने का प्रावधान किया गया है। ऐसे में मछली पालन के व्यवसाय को बढ़ावा मिलेगा और साथ ही किसानों की आर्थिक समस्या का हल भी मिलेगा। ये भी पढ़े: जानिये PMMSY में मछली पालन से कैसे मिले लाभ ही लाभ आजकल हमें यह भी देखने को मिल रहा है, कि सामान्य कृषि में लोगों का रुझान भी कम हो रहा है और साथ ही उसमें आमदनी भी कम होती जा रही है। बारिश के कम ज्यादा होने का मौसम के जरा सा इधर-उधर होने पर कृषि में किसानों की पूरी की पूरी फसल बर्बाद हो जाती हैं। जिससे उन्हें काफी तंगी का सामना करना पड़ता है, ऐसे में इन सब चीजों को देखते हुए लोगों का रुझान मछली पालन की ओर ज्यादा बढ़ा है।

किस तरह से होगा लोन की दर में बदलाव

पहले की बात करें तो किसानों को 100000 के मूल्य पर 1% और 300000 तक के मूल्य पर 3% ब्याज की दर के साथ लोन दिया जाता था। लेकिन अब जबसे मत्स्य पालन को कृषि की तरह ही दर्जा मिल गया है, तो सरकारी विभाग से यह लोन बिना किसी ब्याज के किसानों को दिया जाएगा। साथ ही यहां पर भी किसान कृषि क्रेडिट कार्ड बनवा सकते हैं और उसका फायदा उठा सकते हैं।

मत्स्य पालकों को दी जाने वाली अन्य सुविधाएं और लाभ

वर्तमान समय में छत्तीसगढ़ में 30 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई बांधों एवं जलाशयों से नहर के माध्यम से जलापूर्ति की आवश्यकता पड़ती थी, जिसके लिए मत्स्य कृषकों एवं मछुआरों को प्रति 10 हजार घन फीट पानी के बदले 4 रुपए का शुल्क अदा करना पड़ता था, जो अब फ्री में मिलेगा। [embed]https://www.youtube.com/watch?v=stwIUBJpMGE&t=4s[/embed] मत्स्य पालक कृषकों एवं मछुआरों को प्रति यूनिट 4.40 रुपए की दर से विद्युत शुल्क भी अदा नहीं करना होगा। ये भी पढ़े: 66 लाख किसानों को किसान क्रेडिट कार्ड जारी करेगी यह राज्य सरकार, मिलेगी हर प्रकार की सुविधा
  • राज्य सरकार मत्स्य पालन को बढ़ावा देने के लिए अनुदान (सब्सिडी) उपलब्ध कराती है।
  • मत्स्य पालकों को 5 लाख रुपए तक का बीमा दिया जाता है।
  • मछुआ सहकारी समितियों को मत्स्य पालन के लिए जाल, मत्स्य बीज एवं आहार के लिए 3 सालों में 3 लाख रुपए तक की सहायता दी जाती है।
झींगा पालन करके कमाएं बम्पर मुनाफा, मिलती है सब्सिडी, जानें कैसे

झींगा पालन करके कमाएं बम्पर मुनाफा, मिलती है सब्सिडी, जानें कैसे

आप अगर व्यवसाय शुरू करके बढ़िया लाभ कमाना चाहते हैं, तो झींगा पालन जरूर करें। झींगा का व्यपार करके लोग बढ़िया मुनाफा अर्जित कर रहे हैं। घरेलू बाजार में ताजा झींगा की तुलना में जमे हुए झींगा की बहुत ज्यादा मांग हैं। व्यवसाय करने वालों के लिए झींगा पालन करना बहुत ही अधिक लाभदायक है। जलीय कृषि क्षेत्र में झींगा पालन एक फलता-फूलता व्यवसाय है। यह एक मल्टीबिलियन-डॉलर का उद्योग है, और सबसे अच्छी बात यह है, कि कोई भी व्यक्ति छोटे पैमाने पर भी झींगा फार्म को चला सकता है और बेहतर मुनाफा अर्जित कर सकता है।

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यदि आप इस व्यापार को करके बेहतर मुनाफा के साथ-साथ उच्च गुणवत्ता वाले झींगा का उत्पादन करना चाहते हैं, तो इसके लिए आपको प्रशिक्षण लेना आवश्यक है। नई तकनीक के साथ आपको आवश्यक उपकरण जिससे झींगा पालन करने मे आसानी हो उसे जानना और समझना चाहिए। इस व्यापार में भारी निर्यात क्षमता है, विशेष रूप से घरेलू बाजार में जहां ताजा झींगा की तुलना में जमी हुई झींगा बेचना अधिक लाभदायक है।

झींगा की खेती शुरू करने से पहले इन बातों का रखे विशेष ध्यान:

झींगा की कितनी विभिन्न प्रजातियाँ हैं? किस प्रजाति के झींगा का पालन करने से बेहतर मुनाफा अर्जित करना आसान होगा?

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झींगा पालन करने से पहले आपको स्थानीय झींगा बाजार की प्रतिस्पर्धा और मांग के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त करनी होगी। नजदीकी कृषि अनुसंधान कार्यालय से जानकारी प्राप्त करनी होगी और पता करना होगा कि झींगा पालन के लिए कौन से लाइसेंस की आवश्यकता होती है। एक व्यावसायिक झींगा फार्म चलाने के लिए, अधिकांश राज्यों को आपको एक्वाकल्चर परमिट खरीदने की आवश्यकता होती है। अपने झींगा फार्म को स्थापित करने के लिए आपके पास कई प्रकार के विकल्प हैं। तालाब, विशाल टैंक, स्विमिंग पूल, और कोई भी अन्य जल भंडारण सुविधाएं शामिल हैं। झींगा मछली पालन की एक एकड़ जमीन पर खोदे गए तालाब से करीब 4 हजार किलोग्राम झींगा पैदा किया जा सकता है। जिनका खुले बाजार में मूल्य 350 से 400 रूपये प्रतिकिलों तक होता है, जो मछलियों के मूल्य से अधिक है। एक एकड़ भूमि में झींगा मछली पालन से एक बार में 5 लाख तक की शुद्ध आय हो सकती है। झींगा मछली औषधीय गुणों से भरपूर होता है। इसमें काफी मात्रा में विटामिन और खनिज लवण पाए जाते हैं। झींगा मछली विटामिन डी से भरपूर होने के कारण इसका उपयोग त्वचा संबंधी रोगियों के लिए बहुत लाभदायक होता है। [embed]https://www.youtube.com/watch?v=stwIUBJpMGE&t=8s[/embed] झींगा पालन मे रुचि रखने वाले किसान अपने नजदीकी जिले के मछली पालन, पशुपालन और डेयरी विकास मंत्रालय के कार्यालय में संपर्क करके और भी अधिक जानकारी प्राप्त करके इस व्यवसाय को शुरू करके बेहतर मुनाफा अर्जित कर सकते है।
प्रधानमंत्री मत्स्य सम्पदा योजना से जुड़कर कमाएं मुनाफा, सरकार कर रही है बढ़-चढ़कर मदद

प्रधानमंत्री मत्स्य सम्पदा योजना से जुड़कर कमाएं मुनाफा, सरकार कर रही है बढ़-चढ़कर मदद

हाल ही में मछली पालन से जुड़ी एक स्कीम मोदी सरकार ने शुरू की है, जिसे नीली क्रांति का नाम दिया गया है। इस स्कीम के टाट जलीय कृषि करने वाले किसानों को बैंक ऋण, बीमा आदि अनेक प्रकार की सुविधाएं मिल रही हैं। अगर आप भी मछली पालन शुरू करना चाहते हैं तो यह योजना आपके लिए किसी वरदान से कम नहीं है। आत्मनिर्भर भारत की दिशा में सरकार द्वारा अनेक योजनाएं चलाई जा रही हैं। मछली पालकों को आत्मनिर्भरता की तरफ अग्रसर करने के लिए सरकार द्वारा प्रधानमंत्री मत्स्य सम्पदा योजना चलाई जा रही है। इसमें आर्थिक सहायता के साथ-साथ निशुल्क प्रशिक्षण का भी प्रावधान है। सबसे पहले यह योजना उत्तर प्रदेश में लागू की गई है।

क्या है यह योजना?

अगर आप मछली पालन से जुड़ा हुआ किसी भी तरह का व्यवसाय करना चाहते हैं। लेकिन आपके पास पैसा नहीं है, तो सरकार आपकी पूरी तरह से मदद कर रही है। अगर आप चाहते हैं, कि आप अपनी जमीन को तालाब में बदलकर मछली पालन करना चाहते हैं। तब इसके लिए भी सरकार सब्सिडी दे रही है। विशेषज्ञ की मानें तो एक हेक्टेयर तालाब के निर्माण में लगभग 5 लाख रुपये का खर्च आता है। जिसमें से कुल राशि का 50 प्रतिशत केंद्र सरकार, 25 प्रतिशत राज्य सरकार अनुदान देती है। शेष 25 प्रतिशत मछली पालक को देना होता है। पहले से बने तालाब में यदि तालाब मछली पालन के लिए उसमें सुधार की आवश्यकता है। तो ऐसे तालाबों के लिए भी सरकार खर्च के हिसाब से केंद्र और राज्य सरकार अनुदान देती है, जिसमें से 25 फीसदी मछली पालक को देना होता है।
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कैसे और कौन कर सकता है आवेदन?

कोई भी मछली पालक, मछली बेचने वाले, स्वयं सहायता समूह, मत्स्य उद्यमी, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और महिलाएं, निजी फर्म, फिश फार्मर प्रोड्यूसर आर्गेनाइजेशन / कंपनीज आदि लोन के लिए आवेदन कर सकते हैं। इस व्यवसाय से जुड़ा लोन लेने के लिए आपको किसी भी विशेष पात्रता की आवश्यकता नहीं है। मत्स्य पालन व्यवसाय से पहले आपको मत्स्य विभाग द्वारा दिए जाने वाले प्रशिक्षण को प्राप्त करना आवश्यक है। प्रशिक्षण के दौरान 100 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से प्रशिक्षण भत्ता भी मिलता है।

ऑनलाइन करें आवेदन

अगर आप भी इस योजना का लाभ प्राप्त करना चाहते हैं, तो प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना, (PMMSY) के अन्तर्गत ऑनलाइन आवेदन कर सकते हैं। उत्तर प्रदेश से शुरू की गई यह योजना देश के कई राज्यों में लागू हो चुकी है और मछली पालकों का सहयोग कर रही है। पीएमएमएसवाई ने 2024-25 के अंत तक 68 लाख रोजगार लाने की कल्पना की जा रही है।
मछली पालन को बढ़ाने की कवायद, बढ़ेगी इनकम भी

मछली पालन को बढ़ाने की कवायद, बढ़ेगी इनकम भी

केंद्र सरकार ने किसानों के हित में एक और बड़ी पहल की है, जिसके तहत मछली पालन का काम कर रहे किसान अपनी इनकम बढ़ा सकते हैं. बात राज्य सरकार की हो या केंद्र सरकार की, दोनों ही किसानों के हित में एक से बढ़कर एक योजनाएं चला रही हैं. सरकार की बनाई हुई योजनाओं को फायदा देश का हर किसान ले रहा है. वहीं मछली पालन को लेकर भी राज्य सरकार एलर्ट मोड पर आ चुकी है. मछली पालन को बढ़ाने में सरकार जुटी हुई है. ऐसी कई संस्थाएं हैं, जो किसानों की मदद के लिए आगे आई हैं. जिससे किसान ज्यादा आर्थिक रूप से मजबूत हो सकेंगे. जानकारी के लिए बता दें कि, केंद्र सरकार मछली पालने के लिए कुल लागत करीब 75 फीसद तक लोन भी मुहैया करवाती है.

किसानों को मिले 10 हजार बीज

शोधकर्ताओं ने देश के पूम्पुहार में एक पोर्टेबल मछली हैचरी में कारप बीज का उत्पादन किया, जिसके लिए उन्होंने कारप मछलियों के करीब 10 हजार बीज कुल 15 किसानों को दिए, ताकि ज्यादा से ज्यादा मछलियों का उत्पादन किया जा सके और उनकी प्रजातियों में सुधार हो.

ज्यादा लागत और बढ़ती मौत चुनौती

एक्सपर्ट्स के मुताबिक मछली पालकों के सामने कई चुनौतियां हैं. जिनमें से हैचरी से मछली के बीज काफी महंगे होते हैं. इसके अलावा जो भी मछलियां खरीदी जाती हैं, उनकी मौत भी ज्यादा होती है. इस समस्या को दूर करने के लिए एक मोबाइल हैचरी शुरू की है. जो टेम्प्रेचर, प्रेशर और ऑक्सीजन के लेवल को मेंटेन करने के साथ रोशनी समेत कई सुविधा देता है. ये भी देखें: जानिये PMMSY में मछली पालन से कैसे मिले लाभ ही लाभ

समस्या होगी हल

एमएसएसआरएफ और आईसीएआर-एनबीएफजीआर ने मिलाकर कोशिश करनी शुरू कर दी है. इसका मुख्य उद्देश्य तमिलनाडु जे माईलादुथुराई नाम के जिले में मछली पालक किसनों के सामने आने वाली हर तरह की चुनौतियों को दूर करना है.
इन पशुपालन में होता है जमकर मुनाफा

इन पशुपालन में होता है जमकर मुनाफा

देश में किसानों के लिए खेती बाड़ी के साथ-साथ पशुपालन भी एक मुख्य व्यवसाय है। इसलिए देश के ज्यादातर किसान अपने घरों में पशु जरूर पालते हैं ताकि उन्हें खेती के अलावा कुछ अतिरिक्त आमदनी हो सके। इन दिनों केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा भी पशुपालन को प्रोत्साहित किया जा रहा है ताकि पशुपालक अपने पैरों पर खड़े हो सकें। किसानों को पशुपालन के लिए प्रोत्साहित करने के लिए सरकार ने कई तरह की योजनाएं लॉन्च की हैं। जिनमें किसानों को पशुपालन करने के लिए अच्छी खासी सब्सिडी दी जा रही है। आज हम आपको ऐसे पशुपालन के बारे में बताने जा रहे हैं, जिनकी मदद से जल्द से जल्द अच्छा पैसा कमाया जा सकता है।

बकरी पालन

बकरी पालन में बेहद कम निवेश की जरूरत होती है। यह पशुपालन कम पूंजी के साथ भी शुरू किया जा सकता है। ज्यादातर किसान दूध उत्पादन के लिए बकरियों को पालते है । इसके अलावा मांस उत्पादन में भी बकरियों का अहम रोल है। देश में बकरे के मांस की काफी मांग रहती है। इस हिसाब से किसान
बकरी पालन करके अच्छी खासी कमाई कर सकते हैं। इसकी शुरुआत किसान भाई 2 बकरियों और एक बकरे के साथ कर सकते हैं। इसके बाद जैसे-जैसे मुनाफा होता जाए, वैसे-वैसे निवेश बढ़ाते जाएं।

मुर्गी पालन

भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में यह एक लोकप्रिय व्यवसाय बनता जा रहा है। मुर्गियों का पालन अंडों के लिए और मांस के लिए किया जाता है। जिसकी बाजार में हमेशा मांग रहती है। बढ़ी हुई मांग को देखते हुए किसान अलग-अलग तकनीकों का प्रयोग करके मुर्गी पालन कर रहे हैं, जिससे उन्हें बंपर मुनाफा होता है। सरकार किसानों को बैकयार्ड में मुर्गी पालन शुरू करने के लिए प्रोत्साहित कर रही है। सरकार की यह पहल लोगों को काफी पसंद आ रही है। अगर किसानों के अगल-बगल या आगे-पीछे कहीं भी खाली जमीन पड़ी होती है तो किसान भाई वहां पर आसानी से मुर्गी पालन प्रारंभ कर सकते हैं। इससे किसानों को मुर्गी पालन में ज्यादा लागत नहीं आती और मुर्गियों की देखरेख के कारण अधिक मात्रा में अंडे और मांस का उत्पादन किया जाता है।

मछली पालन

इन दिनों मुर्गी पालन के साथ-साथ मछली पालन भी ग्रामीणों के बीच लोकप्रिय हो रहा है। इसके लिए भी सरकार लोगों को प्रोत्साहित कर रही है। इसलिए सरकार मछली पालन के लिए भारी मात्रा में सब्सिडी दे रही है। जिससे लोग इस व्यवसाय की तरफ तेजी से आकर्षित हो रहे हैं। किसान इन दिनों कतला, रोहू तथा मृगल जैसी मछलियों का पालन करते हैं। इनके अलावा विदेशी कार्प मछलियों में सिल्वर कार्प, ग्रास कार्प और कॉमन कार्प जैसी मछलियों का पालन किया जा रहा है। मछलियों का प्रयोग मांसाहारी भोजन में किया जाता है। इसके अलावा मछलियों से तेल समेत अन्य कई तरह के प्रोडक्ट बनाए जाते हैं, इसलिए किसान भाई मछली पालन करके जबरदस्त मुनाफा कमा सकते हैं। यह भी पढ़ें: भेड़, बकरी, सुअर और मुर्गी पालन के लिए मिलेगी 50% सब्सिडी, जानिए पूरी जानकारी

भैंस और गाय पालन

भैंस और गाय का पालन मुख्यतः दूध की प्राप्ति के लिए किया जाता है। यह एक ऐसा पशुपालन है जिसमें थोड़ा बहुत पूंजी की भी जरूरत होती है। ऐसे में सरकार कई योजनाओं के माध्यम से किसानों को पूंजी उपलब्ध करवा रही है ताकि किसानों को भैंस और गाय पालन के लिए पैसों की कमी न आए। आजकल बाजार में दूध की बढ़ती हुई मांग के कारण किसान भाई  भैंस और गाय पालन में रुचि दिखा रहे हैं। जिससे उन्हें जमकर मुनाफा हो रहा है।
जानें कृषि क्षेत्र से संबंधित व्यवसायों के बारे में जिनसे आप अच्छा खासा मुनाफा कमा सकते हैं

जानें कृषि क्षेत्र से संबंधित व्यवसायों के बारे में जिनसे आप अच्छा खासा मुनाफा कमा सकते हैं

मधुमक्खी पालन करने के दौरान आप केवल शहद से ही धन नहीं कमाते। आप रॉयल जैली, विष, मोम, पराग और प्रापलिस के माध्यम से भी आप अच्छा-खासा धन अर्जित कर सकते हैं। सामान्य सी बात है, हर इंसान को मुनाफा चाहिए होता है। फिर चाहे वो खेती से हो अथवा किसी व्यापार से अर्जित हो। दरअसल, अब आप अपने कृषि को ही व्यवसाय बनाकर उसी से अच्छा-खासा मुनाफा अर्जित कर सकते हैं। आज हम आपको ऐसे ही बहुत सारे व्यवसायों के विषय में जानकारी देंगे, जिनसे आप आसानी से अच्छा खासा मुनाफा प्रति माह कर सकते हैं। सबसे बड़ी बात यह है, कि इस व्यवसाय के लिए आपको अत्यधिक धन भी निवेश करने की आवश्यकता नहीं है। तो आइए आपको बताते हैं, बेस्ट कृषि व्यवसायों के विषय में।

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दूध का काम

दूध का काम किसानों के लिए काफी फायदेमंद साबित होता है। यदि आपके पास गांव देहात में अच्छी खासी जमीन है, तो आप दूध का काम चालू कर सकते हैं। दूध के कार्य में काफी धन एवं यह कृषि व्यवसायों में सबसे ज्यादा मुनाफे का व्यवसाय है। इसे आरंभ करने के लिए काफी ज्यादा निवेश की भी आवश्यकता नहीं पड़ती एवं मुनाफा भी काफी जम कर होता है।

शहद का काम यानी मधुमक्खी पालन

दुसरे नंबर पर शहद का काम आता है। शहद का काम जिसको हम मधुमक्खी पालन भी कहते हैं, काफी ज्यादा साफ काम है। मधुमक्खी पालन करने के दौरान आप केवल शहद से ही धन अर्जित नहीं करते हैं। उसके साथ-साथ मोम, पराग, प्रापलिस, रॉयल जैली और विष इत्यादि के माध्यम से भी आप मोटा धन अर्जित कर सकते हैं। इस कार्य को आप काफी कम धन लगा कर भी चालू कर सकते हैं।

फूलों की खेती

बाजार में फूलों की मांग प्रति दिन बढ़ रही है। पहले फूल केवल पूजा पर उपयोग होते थे। परंतु, अब हर फंक्शन में इस्तेमाल होते हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि फूलों की कीमत किसानों को काफी अच्छी मिल जाती है। साथ ही, फूलों की पैदावार भी किसी अन्य फसल से कहीं अधिक होती है। एक बार किसी फूल का पौधा लग गया तो वह तीन से चार बार फूल देकर ही जाता है।